Wednesday, July 28, 2010

खिलौना

जब जी आया खेला ; जब जी आया तोडा

शायद उसने इंसान नहीं , खिलौना मुझे समझा |


उसने कहा साहिल पे मिलूंगी

लहरे बन हर साहिल पे हमने

उसका कदमे निशाँ ढूँढा

शायद उसने इंसान नहीं , खिलौना मुझे समझा |


उसने कहा मंजिल तुझे ज़रूर मिलेगी

मंजिल क्या थी , एक बार नहीं पुछा

शायद उसने इंसान नहीं , खिलौना मुझे समझा |


उसने कहा ख्वाबो मे मिलेगी

खाबो मे उसका जाना , बार बार देखा

शायद उसने इंसान नहीं , खिलौना मुझे समझा |


शायद उसने इंसान नहीं , खिलौना मुझे समझा |

ज़िन्दगी...

रंग ज़िन्दगी , फिर गम ज़िन्दगी
ए ज़िन्दगी, ए ज़िन्दगी ........

आस ज़िन्दगी, फिर काश ज़िन्दगी
ए ज़िन्दगी, ए ज़िन्दगी ........

आइना ज़िन्दगी, फिर नकाब ज़िन्दगी
ए ज़िन्दगी, ए ज़िन्दगी ........

आस - पास ज़िन्दगी, फिर तलाश ज़िन्दगी
ए ज़िन्दगी, ए ज़िन्दगी ........

आफताब ज़िन्दगी, फिर रात ज़िन्दगी
ए ज़िन्दगी, ए ज़िन्दगी ........

शबनम ज़िन्दगी, फिर नम -नम ज़िन्दगी
ए ज़िन्दगी, ए ज़िन्दगी ........

ए ज़िन्दगी, ए ज़िन्दगी ........
ए ज़िन्दगी, ए ज़िन्दगी ........

ऐतराज

बोझ खुद का उठा पाए ,
तो जी लेंगे ....
बोझ बन जीने से
हमे ऐतराज है

घावों का मरहम मिला ,
तो जी लेंगे...
नमक मल जीने से
हमे ऐतराज है

सपने हकीकत ना बन पाए
तो जी लेंगे ...
बिना सपनो के जीने से
हमे ऐतराज है

दो बूंद पानी की मिल जाये
तो जी लेंगे ...
लहू के प्याले पी जीने से,
हमे ऐतराज है

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